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Monday, September 5, 2011

ग़ज़ल 13

खुशियों को तो एक पल में भुलाते हैं
दर्द का जाने क्यूँ लोग आइना दिखाते हैं

गुज़रते न थे जो मयकदों की गलियों से भी
आज देखा तो पैमानों पे पैमाने पिलाते हैं

कभी तो आओगे लौटकर तुम इस तरफ भी
इसी उम्मीद में घर अपना रोज़ सजाते हैं

उसकी चाहत में कभी मैं न था शामिल
फिर भी उसके प्यार की झूठी आस लगाते हैं

क्यूँ याद करता है तू उन लोगों को शैल
तुझे भुलाकर जो हर रोज़ जशन मनाते हैं

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