प्यार, मोहब्बत, वफ़ा सब फ़साना सा लगता है
शहर में कोई नहीं जाना पहचाना सा लगता है
किसी की याद, ग़म-ए-तन्हाई और जाम है साथ
मयकदे में हर शक्स दीवाना सा लगता है
उसकी जुल्फें, उसकी आँखें, उसके चेहरे की रौनक
दीदार-ए-आरजू लिए एक पल भी ज़माना सा लगता है
क्या कहें की दिल टूटा है कैसे और कितनी बार
किसी का प्यार से देखना भी अब सताना सा लगता है
इस दिल में अब तो वही है बस वही रहेगा "शैल"
किसी और को कितना भी सोंचू अनजाना सा लगता है