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Thursday, June 30, 2011

ग़ज़ल 8

उसकी यादों से ये शाम रंगीन है
मेरे ख़्वाबों की दुनिया अब भी हसीन है

सज़ा कुछ भी हो मुक़र्रर कर चाहत की
किया इस दिल ने जो खता वो संगीन है

गिरने दे आँखों से तो कुछ सुकून मिले
ये कहकर मेरे अश्क भी ग़मगीन हैं

चाहे उड़ ले जितना ऊंचा पर ये सोच ले
तेरे पांव के नीचे आसमान नहीं ये ज़मीन है

मत कर दुनिया से ख़ुशी की उम्मीद शैल
मसर्रत नहीं ये तो ग़म की शौक़ीन है

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