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Sunday, April 10, 2011

ग़ज़ल 5

अब तो निकल आओ परदे से आफताब बनकर
कब तक छुपे रहोगे यूँ ईद का चाँद बनकर

कोई नफ़रत कोई शिकायत न रहेगी किसी से
जब मिला करोगे सबसे इंसान बनकर

बहुत तकलीफ होती है तेरे जाने के बाद
आया न करो दिल में यूँ मेहमान बनकर

हज़ारों बरबाद हुए तुम्हारी चाहत में
कब तक चुप रहोगे यूँ नादान बनकर

दोस्ती में अब उस मुकाम से गुज़रना है शैल
जब मिलोगे तुम लोगों से मेरी पहचान बनकर

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