Pages

Monday, January 24, 2011

ग़ज़ल 1

कुछ पाने की ख्वाहिश को मन में लाया ना गया
उसके जाने के बाद किसी और से दिल लगाया ना गया

कुछ तो बात थी उसकी मुस्कुराहट में
लाख चाहकर भी मुझसे भुलाया ना गया 

यूँ तो खफा मुझसे वो हर रोज़ होता था
लेकिन इस बार वो रूठा ऐसे की मनाया ना गया

किससे कहता मैं हाल-ए-दिल वो जो ना था मेरे पास
उसकी यादों के सिवा अपना कोई बनाया ना गया

कोई नहीं चलता साथ सफ़र-ए-ज़िन्दगी में शैल
अंधेरों में तो साए से भी साथ निभाया ना गया

2 comments: