खुशियों को तो एक पल में भुलाते हैं
दर्द का जाने क्यूँ लोग आइना दिखाते हैं
गुज़रते न थे जो मयकदों की गलियों से भी
आज देखा तो पैमानों पे पैमाने पिलाते हैं
कभी तो आओगे लौटकर तुम इस तरफ भी
इसी उम्मीद में घर अपना रोज़ सजाते हैं
उसकी चाहत में कभी मैं न था शामिल
फिर भी उसके प्यार की झूठी आस लगाते हैं
क्यूँ याद करता है तू उन लोगों को शैल
तुझे भुलाकर जो हर रोज़ जशन मनाते हैं
gud one dude! keep going.
ReplyDeletewaah... khoob likha hai...
ReplyDeletelajawaab...
@suraj...thank u dost :)
ReplyDelete@pooja...shukriya :)