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Saturday, July 2, 2011

ग़ज़ल 9

तू जो मुस्कुराया तो इक फ़साना बना
ग़म छुपाने का इक बहाना
बना

तुझे देखकर संभल न पाया
कभी
तेरा हुस्न इस क़दर कातिलाना बना

आये गए हज़ार इस ज़िन्दगी में
पर दिल का कहीं और न ठिकाना
बना

तेरी हर एक अदा पे प्यार आता है
क्या कहूँ क्यूँ मैं दीवाना बना

मिट न सका है किस्सा-ए-मुहब्बत शैल
चाहे दुश्मन इश्क का ज़माना बना

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