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Wednesday, July 27, 2011

ग़ज़ल 11

तेरे लिए न जाने कितनो से दूर हुआ
वक़्त के साथ ये दिल भी मजबूर हुआ 

इश्क को कब सराहा है  जग वालों ने
मरने के बाद ही ये मशहूर हुआ

किसकी तमन्ना किये बैठा है ऐ दिल
दिल तोड़ना तो ज़माने का दस्तूर हुआ

तू जो साथ है तो कर जायेंगे कुछ भी
तेरे लिए हर सितम भी मंजूर हुआ

क्यूँ नहीं मिलती हैं तकदीरें अपनी शैल
दीवानों से ऐसा भी क्या कसूर हुआ

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